Shri shyam narayan pandey biography of barack
क्रांति की अमर कृति हल्दीघाटी और जौहर के रचनाकार मऊ जिले के कवि श्याम नारायण पाण्डेय
जन्मभूमि के स्वातंत्र्य के प्रति तड़प और उसके प्रति गौरव भावना का ज्वाजल्यमान दृष्टांत हल्दीघाटी के उपाख्यानों में हम एक-एक कर पाते हैं। राणा प्रताप के स्वाभिमान का ओजस्वीपूर्ण वर्णन असंख्य लोगों को उनका मुरीद बनाता है।स्वतंत्रता आंदोलन का वह युग, एक ऐसा युग था जब देश में व्याप्त उथल-पुथल को हिंदी कविता का विषय बनाकर कवि अपने दोहरे दायित्व का निर्वहन कर रहे थे। वह एक ओर तो राष्ट्र के प्रति अपने स्वधर्म का निर्वाह राष्ट्रीय भावनाओं को अपनी कविता का विषय बना कर रहे थे तो वहीं दूसरी ओर वह राष्ट्रव्यापी स्वातंत्र्य चेतना को युवाओं की धड़कनों में अपनी कलम के द्वारा अनवरत उद्दीप्त कर रहे थे। स्वाभाविक था कि उर्वर प्रज्ञा भूमि के चलते कवि ने तत्युगीन समस्याओं को अत्यधिक संवेदनशीलता के साथ ऐतिहासिक सांचे में रखकर समूचे युग के सामने एक दृष्टान्त रखा। इसके पीछे जो महनीय उद्देश्य कार्य कर रहा था वह यही था कि राष्ट्रीय भावनाओं से ओत-प्रोत कविताओं की कोख में स्वातंत्र्य चेतना का विकास होता रहे और यही कारण था उनके हर काव्य, महाकाव्य में क्रांति कामना चरितार्थ हुई है।'जौहर' में चित्तौड़ की रानी पद्मिनी का हृदयहारी आख्यान है। रानी पद्मिनी जो न सिर्फ राजपूती स्वाभिमान का अपितु भारतीय नारी के उस गौरव का प्रतीक हैं जो अपने सतीत्व और सम्मान के स्वातंत्र्य की रक्षा हेतु हंसते-हंसते जौहर की ज्वाला में कूदकर प्राणों को स्वाहा कर देती है। आजादी के उसी युग में यह उस अप्रतिम भाव का द्योतक नहीं तो और क्या है, कि जब स्वातंत्रता की अभीप्सा लिए तरुण दीवाने किसी भी प्रकार के बलिदान यहां तक कि आत्माहुति देने में भी पीछे नहीं हटते थे।श्यामनारायण पाण्डेय जी की कृतियों की विशेष बात यह है कि यदि वह पौराणिक आख्यान को भी अपने काव्य का आधार बनाते हैं तो भी उसकी विषयवस्तु के चुनाव में वह ओज तथा वीर रस को ही प्रमुखता देते हैं। वह वीरता जो उस युग की पहचान थी। वह ओजस्विता जो पराधीन भारत में भी स्वाभिमान और राष्ट्रगौरव के भाव से भारतीय जन-मन को ओत-प्रोत रखा करती थी। यहां 'तुमुल' और 'परशुराम' का उल्लेख समीचीन होगा। जब तुमुल के अंतर्गत दो पराक्रमी और विलक्षण व्यक्तित्व के धनी युवाओं लक्ष्मण और मेघनाद के बीच धर्मयुद्ध हुआ तो वस्तुत: उसके माध्यम से भारतीय संस्कृति और समाज के उद्दात्त प्रतिमानों को उपस्थापित किया गया है। वहीं परशुराम विष्णु के ही रौद्र अवतारस्वरूप धर्मसंस्थापनार्थ की भावभूमि पर रचे-बसे एक ऐसे व्यक्तित्व हैं जो अपनी प्रतिबद्धताओं के पालनार्थ कुछ भी कर सकते हैं-'आखों से बहती अग्निसरित्,मुख तेज वर्तुलाकार हार।जिह्वा पर बुदबुद शिवस्तोत्र,रुधिरेच्छु भयंकर परशुधार।।'स्वाभाविक था कि उस युग का जनमानस अपनी मातृभूमि के लिए सर्वस्व समर्पण के सहज भाव से आप्लावित होता। 'जय हनुमान' भी उसी प्रतिकार का प्रतीक है जो उस दौरान गांधी जी के 'करो या मरो' के आह्वान के बाद 'करेंगे या मरेंगे' के रूप में कोटि-कोटि आवाज बनकर उद्घोषित हो उठा-'ज्वलल्लाट पर प्रचण्ड तेज वर्तमान था,प्रचण्ड मानभंगजन्य क्रोध वर्धमान था।ज्वलंत पुच्छबाहु व्योम में उछालते हुए,अराति पर असह्य अग्निदृष्टि डालते हुए।उठे कि दिग्दिगंत में अवण्र्य ज्योति छा गई,कपीश के शरीर में प्रभा स्वयं समा गई।।पाण्डेयजी के काव्य में भाव और अलंकारों का हम अद्भुत सम्मिश्रण पाते हैं। वह अपने समय में कवि सम्मेलनों के शीर्षस्थ कवि थे। कहा जाता है कि उनके शौर्यपूर्ण काव्य को उन्हीं की ओजस्वी वाणी में सुनने की इच्छा लिए श्रोतागण मीलों-मील पैदल चलकर पहुंचा करते थे। कवि पाण्डेयजी के व्यक्तित्व का एक पक्ष यह भी था कि वे बहुत स्पष्टवक्ता थे। कविधर्म के विशेष गुणों से अलंकृत होने के बावजूद चारणधर्मिता या चाटुकारिता को उन्होंने स्वयं से कोसों दूर रखा था। आज आजादी का अमृत महोत्सव मनाते हुए कवि श्यामनारायण पाण्डेय जैसे दुर्धर्ष कवि योद्धा का पावन स्मरण अनिवार्य प्रतीत होता है।
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